Indian Politics

त्रिपुरा में माणिक सरकार की हार के कई मायने हैं।
जिस देश में 5 साल सरपंच जैसा पिद्दी सा पद पाकर लोग करोड़पति हो जाते हों,वहाँ 25 साल मुख्यमंत्री रहकर भी कोई अपने खाते में 10 हजार न जमा कर पाए,गाड़ी न खरीद पाये,बंगला न बनवा पाये,किसी कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में अपने लड़के या बीबी को न बिठा पाये तो ऐसा नेता भला देश के किस काम का?
जो खुद का भला न कर सका,वो देश का या त्रिपुरा प्रदेश का भला क्या करेगा??
बेचारे के पास न तो खर्चने के लिए अकूत दौलत थी,न बाँटने को शराब और साड़ियां और न ही कार्यकर्ताओं को देने के लिए 2000 वाले पिंक नोट!!
और सामने थी बेहिसाब दौलत और बेहिसाब बाहुबल से लबरेज एक पार्टी।।
जनता भला इस गरीब,लाचार आदमी को क्यों चुनती??
जब जनता के हितों की खातिर बरसों नाक में ट्यूब लटकाए अनशन करने वाली शर्मिला इरोम को जमानत बचाने लायक नहीं बख्शा तो ये माणिक सरकार किस खेत की मूली था।।
दरसल ऐसे नेताओं की अब जगह ही नहीं भारतीय लोकतंत्र में...इन्हें खुद ब ख़ुद सन्यास लेकर घर में बैठना चाहिये।।
माणिक सरकार,ममता बनर्जी,अरविंद केजरीवाल तुम सब अयोग्य हो इस देश की राजनीति में या फिर हम सब अयोग्य हैं तुम्हारे लिए।।

अलविदा माणिक

Capt Shekhar Gupta


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